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खूब बेचीं स्वतंत्रता दिवस भावना

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खत्म हुई स्वतंत्रता दिवस की खरीद फरोख्त ………..१५ दिन तक मचा कोहराम(व्यंग्य )
आपको मेरी पोस्ट में ये हेडिंग किसी समाचार चैनल के वाचक की तरह लगेगी पर सच आप को भी पता है कि इस बार हमने खूब बेचा स्वतंत्रता दिवस पर आपको याद आएगा ही नहीं पर आपने झंडा बेचा आपने मिठाई बेचीं और नाप तोल ने न जाने कितनी छुट दी आखिर देश स्वतात्न्त्र हुआ था पर जब स्वत्रता दिवस बेचा जा रहा था तो उसको खरीद कौन रहा था !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!! क्या किसी गरीब या बिना पैसे वाले को भी स्वतंत्रता खरीदने का मौका मिला !!!!!!!!!! अब नहीं मिला तो क्या हुआ आप ही कौन से अमीर है अगर अमीर होते तो भूखे नंगो की तरह माल ऑनलाइन मार्केटिंग के लिए दौड़ते आखिर जिसको देखिये वो ५० से ७० प्रतिशत की छुट दे रहा था वो भी स्वत्र्ता के नाम पर और स्वतंत्रता का ननगा सच ये था कि इस देश में गरीब की छोडिये ऐसे लोगो की नजाने कितनी गिनती देखने को मिली जिनके पास पैसा था ही नही और इसी लिए ५० प्रतिशत की छुट पाकर अपने घर या तन को ढकने क एलिए दौड़ पड़े वैसे ये छूट देश की समृद्धि को बता रहा था या फिर महंगाई और खोखले जीवन का आइना बन कर खड़ा था | वैसे स्वतंत्रता दिवस को बेचने वाले उनके लिए क्या लाये थे जो रिक्शा खीच रहे थे !!!!!!!!!!!! उन बच्चो के लिए क्या लाये जो सड़क के किनारे छोटे छोटे सामान बेच रहे थे क्योकि उनकी अम्मा ने बताया था कि आज पैसे अच्छे मिलेंगे |मैंने झंडे को खरीद कर फहराने का विरोध करता हुआ चौराहे पर खड़ा था एक छोटी सी बच्ची छोटे छोटे झंडे पकडे थी एक तरह देश था दूसरी तरह भारत का असली चेहरा नन्ही सी मुठ्ठी में कई झन्डे पकडे खडी थी सारा आदर्श हिल रहा था और ऐसा लग रहा था मानो बच्चे भगवन की मूरत है , की बात अपना सच दिखा रही थी मैंने बहुत सहस करके पूछा कि बिटिया तुम कितनी साल की हो …….८ साल की हूँ अंकल !!!!!!!!!!!!! झंडे ले लो मुझसे मैंने कहा झंडे क्यों बेच रही हो !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!! मुझे तो मम्मी ने भेजा है और कहा कि जाओ अगर पेन्सिल चाहिए तो इसे बेच आओ और मुझे स्कूल जाना है ना और वो चुप चाप देखने लगी उसने चुप चाप अपना झंडा पकडे हुए हाथ मेरी तरह बढ़ा दिया …………….मैं अवाक् था क्या झंडा खरीद लूँ पर अपने देश के वीरो का अपमान मैं ही कैसे करूँ !!!!!!!!!!!!!!!!!!!! मैंने पूछा कितना का है बेटा………. २ रुपये का ( क्या देश है वीरो का खून दो रुपये का ) मैंने पूछ कितने बेचे उसने कहा एक भी नहीं मैंने कहा कि मुहे तो बस एक चाहिए और मेरे पास दस रुपये है !!!!!!!!!!!!!!!!!!! बिटिया उदास हो गयी फिर मैंने कहा कि कोई बात नहीं तुम्हरे साथ कोई और है उसने कुछ दूर कहदे अपने भाई की तरह इशारा किया जो शायद १२ साल का रहा होगा मुझे मौका मिल गया मैंने कहा जाओ अपने भाई से १० रूपये देकर ८ रुपये ले आओ और जैसे ही वो बिटिया भाई की तरह १० रुपये लेकर बढ़ी मैंने भीड़ में खो गया …………लेकिन सामने बड़े बड़े बैनर लगे थे १५ अगस्त तक ही छूट है पूरे ५० प्रतिशत की छूट हर तरह की खरीद पर क्या एक नन्ही सी बच्ची देश की स्वतंत्रता बेच रही थी या गरीबी स्वतंत्रता बेच रही थी या फिर ये बहुराष्ट्रीय कंपनी एक देश की स्वतंत्रता को अपने लाभ के लिए बेच रही थी अगर कंपनी ५० से ७० प्रतिशत लाभ छूट देने की स्थिति में है तो आप खुद सोचिये कि एक कंपनी आपको पूरा साल कितना लूटती है तो बिकी न आप की स्वतंत्रता लेकिन वो कौन लोग है जो कश्मीर में गोली खा रहे थे लाल किले से बलूचिस्तान के लिए चेता रहे थे क्या अपने देश की स्वतंत्रता को अक्षुण रखने के लिए ये सही स्वतंत्रता दिवस नहीं था !!!!!!!!!!!!!!!!!!! पर आप तो कहेंगे ही ये भी कोई स्वतंत्रता है क्या फायेदा गोली खाने में दुसरे के मामले में टांग उलझाने की …..स्वतंत्रता तो वो है जिसमे हमको फायेदा हो देखिये ना हमने इस बार स्वतंत्रता दिवस पर कितनी खरीददारी की हमको कोई कुत्ते ने थोड़ी ना काटे है जो ऐसा मौका छोड़ दे तो फिर अंग्रेजो ने क्या गलत किया आपको रोटी देकर आपके देश को बर्बाद कर डाला …………क्योकि आप तो मानने से रहे कि १५ अगस्त से ज्यादा पीछे १५ दिन सिर्फ खरीद फरोख्त मानते रहे हम सब ( कभी तो मान लिया कीजिये कि आप पासे से ज्यादा कुछ नहीं मानते )

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