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सावरकर जी आप क्या है

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रंगा सियार ( व्यंग्य )………..
मेरी होली की रंगी फोटो को देख कर सावरकर को गद्दार बताने वाले खेमे के एक मित्र ( आम तौर पर पार्टी का मतलब तो प्रजातंत्र के नागरिकों से होता है जो पार्टी के नाम पर एक दुसरे को मारते काटते है पर भला कोई पार्टी के लोग दूसरी पार्टी के लोगो के घर की शादी ब्याह में जाना छोड़ते है !!!!!!! आप पार्टी में क्या है ये आप खुद समझ लीजिएगा ) ने कहा कि चलिए आपने माना तो सियार रंगे होते है मैंने कहा हां जब से जगल कटे है तब से सियार शहरों में रहने लगे है वैसे आप शहर कब आये !!!!! मेरे मित्र चिढ कर बोले क्या कहना चाहते है आप मैं सियार हूँ !!!!!!!!!!! मैंने कहा जी नहीं मैं ऐसा क्या कहने लगा आखिर गिरगिट कभी रंगा तोड़ी ना जाता है | देखिये मैंने आपकी फोटो पर मजाक क्या किया आप मुझ पर व्यंग्य पर व्यंग्य किये जा रहे है मैंने कहा हो सकता है पर खरबूजे को देख कर ही खरबूजा रंग बदलता है हो सकता है जब से सियार इस देश में रंग बदल का रहने लगे हो उसका असर मुझ पर भी हो और आप नहीं कहेंगे तो सावरकर जी को गद्दार कौन कहेगा आखिर खग जाने खगही की भाषा | देखिये आप हद से ज्यादा बड़ी बड़ी बात कर रहे है आपको मालूम नहीं कि क्या हो सकता है !!!!!!! मैंने कहा मालूम है अगर आप चुप ( पार्टी के लोग जिसमे कुछ ऐसे नाम है जिनको लेना देश के हिट में नहीं है ) ना रहे होते तो भगत सिंह को १९३१ में फांसी ना होती अब इसी लिए तो स्वतंत्र भारत में आप कडहिया को भगत सिंह कह रहे है आखिर एक भारतीय को फिर फांसी चढ़वा कर ही आप अपनी राजनीति सेंक सकते है वैसे आपको तो पता होगा कि भगत सिंह ने ही कहा था कि वो जमीन में गोली बो रहे है पर आप को इससे क्या !!!!!!!!!!आपको तो कुछ आता जाता नहीं देश जाये भाड़ में आपने आखिर पढ़ जो रखा है अजगर करें न चाकरी पंछी करें न काज…दास मलूका कह गए सबके दाता राम ……….और इसी लिए ए ओ ह्यूम ने १८८५ में जो पार्टी बनाई आप उसी से चिपक गए तो आप जब शुरू से अंग्रेजो के दिए पर पेट भरते रहे है तो १९३१ में भला भगत सिंह की फांसी पर कैसे बोलते !!!!!!!!!!! और जिस सरवरकर ने अंग्रेजो को छका दिया हो उस अंग्रेज की बनायीं पार्टी वाले अगर सावरकर को गद्दार नहीं कहेंगे तो कौन कहेगा इतने स्वामी भक्त आप ही हो सकते है !!वो तो भला हो नेता जी सुभास चन्द्र बोस का जो समझ गए आपके अंग्रेज प्रेम को और १९४० में इस देश के लिए जीने लगे पर आप ये क्यों मानने लगे वैसे आप ने अपनी अंग्रेजो की पार्टी को स्वतंत्रता के बाद ख़त्म क्यों नहीं किया !!!!!! क्या आपको एक पार्टी तक बनाना नहीं आता था !!!!तो देश बनने का ठेका क्यों ले लिया !!!!!!!! पर आप लेते क्यों नहीं आखिर कुर्सी की लालच में जो रहते है ( उत्तराखंड के बारे में आप क्या सोचते है ) देश की जनता के सामने नयी पार्टी से आते तो आपको बताना पड़ता कि आप में ऐसा क्या है जो देश कि संसद में आपको बैठाया जाये और ऐसे में तो आप कहाँ होते ये कहने की जरूरत नहीं है | एक देश की जनता जिसके सामने स्वतंत्रता दिलाने का ठेका आपकी पार्टी ने ले रखा हो तो ८० प्रतिशत से ज्यादा गॉवो में रहने वाले के लिए तो आप देश को आजाद करने वाले भगवान थे भगत सिंह ,मदन लाल ढींगरा , सुख देव, राज गुरु, चन्द्र शेखर आजाद, लक्ष्मी बाई, तात्या टोपे , नेता जी , आदि तो कुछ थे ही नहीं और आपने इनको कभी इतिहास में महँ दर्ज होने भी नहीं दिया तो भला देश के लोग आपकी फोटो आपका गान देख कर आपही को भगवान समझते रहे आखिर जब सीता जी ऋषि के वेश में रावण से धोखा खा गयी तो इस देश की जनता को तो जो आपने दिखाया उसको सही मान लिया और आप ऋषि बन कर ६० साल देश में बने रहे | लेकिन आपको तो गद्दी की आदत है तो बिना गद्दी के आप अनाप सनाप तो बकेंगे जब विवेकानंद ( नरेंद्र ) को विदेशियों ने समझा तो ये देश भी उनको स्वामी जी कहने लगा और आपको नरेंद्र की विदेश में ये प्रतिष्ठा देखी नहीं जा रही है तो आप हर मासूम में बुखार आने पर पूछेंगे ही कि अच्छे दिन कब आएंगे अब जब आपने कैंसर बन कर देश के शरीर को खा डाला है तो नरेंद्र एक डॉक्टर बन कर जो कर सकते है कर रहे है और मरीज ( देश की खस्ता हाल ) की हालत में सुधर होते देख आप वो हर कोशिश कर रहे है जितना खोखला करके अंग्रेज इस देश को १९४७ में गए थे | मैंने तो सुना था कि डायन भी दो घर छोड़ कर हमला करती है लेकिन आप डायन की नैतिकता भी क्यों माने !!!! क्या आपको खुद पता है कि सियार खुद को रंग कर कैसे देश में रह भी सकता है और अपनी असलियत छिपा भी सकता है और मुझे बुरा नहीं लगा जब आपने मेरी होली की फोटो देख कर कहा कि मैं रंगा सियार लग रहा हूँ आपकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और उसको स्वीकारने की ताकत को काश इस देश में १९४७ के बाद ही समझ लिया होता तो सावरकर जी को इच्छा मृत्यु का वरण न करना पड़ता क्योकि एक देश भक्त अपने सामने रंगे सियारों को देश से गद्दारी करता देख क्यों जिन्दा रहता !!!!!!!! अमिन जनता हूँ आप कभी अपने को सावरकर कहलाना नहीं पसंद करेंगे क्योकि !!!!!!!!!!! डॉ आलोक चान्टिया
अखिल भारतीय अधिकार संगठन

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