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औरत भस्मासुर है

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रात आधी बीत चुकी है आप सब भांग लेकर शिव की शादी से अभी अलुटे नहीं होंगे पर मैं अभी किराये के लोगो से पढ़वाई जा रही रामायण से भाग लेकर बस आया ही हूँ और दुनिया की आधी आबादीके दिवस पर लिखने बैठ गया | अगर मेरी माँ ने मुझको जन्म देने से इंकार कर दिया होता तो !!!!!!!!!!!!!!! या फिर देश की हर माँ ने ये निश्चित कर लिया होता कि अब उसके गर्भ में बीटा जन्म नहीं लेगा तो क्या होता !!!!!!!!!!!!!!!!! फिर भी औरत खुद भस्मासुर बन गयी और अपने हर तरह के उत्पीड़न के लिए जिम्मेदार पुरुष को अपनी बर्बादी की कीमत पर जन्म देने का दर्द और रिस्क लेने लगी पर पुरुष ने उसके इस त्याग को नैसर्गिक गुण कह कर शुतुरमुर्ग की तरह जीवन जीना ज्यादा उचित समझा लेकिन हम सब उस त्याग और तपस्वी को  नहीं समझ पा रहे और उसी औरत के लिए इतने क्रूर हो चुके है की आज वही पुरुष को इस धरती से परिचय कराने वाली महिला उसी पुरुष से अपना अधिकार मांग रही है अपनी गरिमा अस्मिता की लड़ाई लड़ रही है और जिस पुरुष को उसने ३६५ दिन जीने क एलिये दिए उसी पुरुष समाज में अपने संघर्ष को एक दिन समर्पित कर रही है क्या ये दुनिया का ९ अजूबा नहीं है कि खुद को बर्बाद करके किसी को जीवन देने की कला सीखने वाली महिला आज खुद के जीवन के लिए तरस रही है वो भी उसी से जिसको उसने जीवन दिया पर कल की सुबह ना जाने कितने बधाई सन्देश से हर सोशल साइट छप जाएँगी पर कोई भी एक छोटी सी बात नहीं मान पायेगा कि आज हम जिसके कारण इस दुनिया में है उसकी सर्वोच्चता को स्वीकार कर ले .महिला को पुरुष से आगे मान ले !!!!!!!!!!!!!!!! क्यों है ताकत ये मानने की १!!!!!!!!!!!!!!!!!!!! यदि नहीं तो महिला दिवस न मनाइये और न कुछ कहिये ………महिला दिवस कितना शुभ है ये तो कल के अख़बार बता पाएंगे जब बलात्कार छेड़छाड़ की कोई खबर ना हो ???????? क्या ऐसा किसी एक दिन हो सकता है !!!!!!!!!!!!! तो महिला दिवस क्या महिला की लाश पर हम मानते रहेंगे !!!!!सोचियेगा जरूर आपके सामने महिला दिवस एक प्रश्न बन कर है |
डॉ आलोक चान्टिया
अखिल भारतीय अधिकार संगठन

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