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क्या ये भ्रष्टाचार है !!!!!!!!!!!!!

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आइये सुनिए भ्रष्टाचार का क ख ग ……
जानिए यूनिवर्सिटी के मानवाधिकार उल्लंघन का माया जाल
कभी कभी लगता है कि अगर भारत में से भ्र्ष्टाचार शब्द निकाल दिया जाये तो कुछ ऐसा बचेगा ही नहीं जिस पर चर्चा की जा सके और  जब भ्रष्टाचार को देखने के लिए आप एक पल के लिए भी यूनिवर्सिटी की तरफ आँख उठा दे तो आप भ्रष्टाचार के एसिड से अंधे हो जायेंगे वैसे आप चाहे तो इसको श्वेत यश अपराध कह सकते है जिसमे ऊंची कुर्सी पर बैठा व्यक्ति अपने पद का दुरुयोग करते हुए ऐसी चाल चलता है कि सारे गलत काम भी हो जाते है और उसके ऊपर आंच तक नहीं आती है | यही हाल है देश की यूनिवर्सिटी का पर इस समय तो मैं लखनऊ में हूँ तो वही की बात करूँगा | मैंने कुछ दिन पहले एक शून्यपरिकल्पना की कि यूनिवर्सिटी में भ्रष्टाचार नहीं है पर ज्यो ज्यो आंकड़े एकत्र किये तो परिकल्पना झूठी साबित हुई और शोध का निष्कर्ष आया कि सारे भ्रष्टाचार की जनननि यूनिवर्सिटी होती जा रही है | इसी लिए मैंने उत्तर प्रदेश के राजपाल महोदय से कहा कि जब सब कुछ गलत होता देख कर खामोश होना या रहना ही कुलपति कहलाता है तो आलोक चान्टिया क्या बुरा है पर अभी कोई उत्तर नहीं मिला है | आइये आपको थोड़ा भ्रष्टाचार का विष पिलाते है ………….. विश्वविधयालय अनुदान आयोग नयी दिल्ली ने अपने अंधे पिटारे से २००९ में एक शोध नियमन प्रणाली विकसित की और कहा कि जो भी शोध कार्य २००९ के अनुसार नहीं किये गए उनको शोध की शर्तो पर खरा नहीं माना जायेगा वैसे तो आज तक इस देश में कानून रहा है कि जब भी कोई नियम परिनियम या विधि जिस तिथि या वर्ष से लागू होती है तभी से उसको प्रभावी माना जाता है उसको पीछे की तिथि से लागू नहीं किया जा सकता है पर शिक्षा के क्षेत्र में ऐसा नहीं है यहाँ प् रकाः जा रहा है कि ये सब पर लागू होगा पता नहीं ये भ्रष्टाचार है कि नहीं पर अगली बात देखिये आज कल यूनिवर्सिटी में भर्ती कार्यक्रम चल रहा है और भर्ती के लिए उन्ही लोगो को बुलाया जा रहा है जो नेट एग्जाम पास हो या जिनकी पी एच डी २००९ के मानको पर हो अब ना जाने कितने ऐसे लोग है जिनकी पीएच डी तो २००९ के पहले की है पर वो २००९ के मानक पर है ही नहीं तो उनको साक्षात्कार  में बुलाया ही नहीं जा रहा है | ये दुर्दशा  मुख्य रूप से असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर आवेदन करने वालो की ज्यादा है | पहला तथ्य ये कि ज्यादातर असिस्टेंट प्रोफेसर बनने वाले लोग किसी न किसी कालेज में पहले से शिक्षक है और उनको अंशकालिक आय स्ववित्तपोषित शिक्षक तभी बनाया गया है जब वो यू जी सी और परिनियमवली में दी गयी अर्हता पूरी करते है यही नहीं इसी महान यूनिवर्सिटी ने उत्तर प्रदेश राज्य यूनिवर्सिटी अध्नियम १९७३ की धारा ३१ ( ११) में ऐसे सभी शिक्षको को अनुमोदन भी किया जो उनके अनुसार २००९ के मानक पर खरे नहीं है अब सबसे बड़ा प्रश्न कि जब कालेज में पढ़ाना था तो सब ठीक था और जब यूनिवर्सिटी में पढ़ाना है तो वही यूनिवर्सिटी के कुलपति से अनुमोदित शिक्षक आयोग्य हो है !!!!!!!!!!!!! ये के अहै भ्रष्ट चार , या मनमानी या फिर दे दिखाना कि स्वतंत्र भारत में कुलपति स्वयंभू है वो जो चाहे करें जब छाए तो किसी गलत व्यक्ति को अनुमोदन करके शिक्षक बना दे और जब चाहे तो अपने ही अनुमोदित शिक्षक को इस लिए साक्षात्कार में ना बुलाये क्योकि वो २००९ के अनुसार अर्हता पूरी नहीं करता है !!!!!!!!!!!!!!!!! यदि ये कार्य समस्त भारतियों को विधिसम्मत लगता है और कोई इसमें भ्रष्टाचार  नहीं दिखाई देता तो आप एसोसिएट प्रोफेसर के लिए कहेंगे !!!!!जब २००९ के मानक पर ही पी एच डी होनी चाहिए तो  वरना आप योग्य ही नहीं है तो आज वर्ष २०१६ में जो भी एसोसिएट प्रोफेसर के लिए अप्लाई कर रहा है उसके पास पी एच डी और ८ साल का अनुभव होना चाहिए और ८ साल का अनुभव होने का मतलब वो २००८ में शिक्षक हो तो क्या उनकी सबकी पी एच डी २००९ के मानक के अनुरूप है और जब है ही नहीं तो उनको कैसे अस्सोसिते बनाया जा रहा है और हो भी नहीं सकती !!!!!!!!!!!!!!!!! अगर उनको पिछले वर्षो का लाभ दिया जा रहा है तो क्यों नहीं असिस्टेंट प्रोफेसर को .की असोसिएट प्रोफेसर पर हुई भर्ती भ्रष्टाचार है या नियमो की अनदेखी या फिर वही कि मेरी मर्जी और ऐसे सारे अवैध एसोसिएट की भर्ती सिर्फ अविधिक कार्य है और उस पर प्रदेश के कुलाधिपति को ध्यान देना चाहिए कि नहीं | यदि असिस्टेंट प्रोफेसर को पी एच डी के मानक २००९ से गुजरना पद रहा है तो असोसिएट को भी होना चाहिए और उन सभी पर २००९ का नियम लागू होना चाहिए जो अपने को पी एच डी धारक कहते है और शिक्षा के क्षेत्र में है यदि एस नहीं है तो सरे पी एच डी धर्को की डिग्री फर्जी मनाई जाये क्योकि वो २००९ के अनुरूप नहीं है और ऐसे सारे विज्ञापन और भर्ती रद्द की जाये क्योकि देश और विधि संविधान सभी के लिए एक है !!!!!!!!!!!!! क्या आपको यूनिवर्सिटी का ये भ्रष्टाचार समझ में आया क्या ये मानवाधिकार उल्लंघन नहीं है !!!!!!क्या ये श्वेत पॉश अपराध नहीं है !!!!!!!!!और है तो आप कब तक देश में अज्ञानता के प्रकाश में जीते रहेंगे !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!! डॉ आलोक चान्टिया , अखिल भारतीय  अधिकार संगठन

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