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अभिव्यक्ति से अभी तक के व्यक्ति का सफ़र

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अभिव्यक्ति से अभी का व्यक्ति
उत्तर प्रदेश के तराई इलाके में कडाही को कड़ाहिया ज्यादा कहा जाता है और आज कल के इस्क्रेबेर ( जिससे बर्तन धोते है ) की जगह इसे जूना कहा जाता है | अब आइये मतलब की बात पर बचपन में जब महरी आती थी तो जून से कड़ाहिया को जब साफ़ करती थी तो वो आवाज बहुत होती थी इस पर मैं मैंने माँ से जब कहा तो वो बोली कि कड़ाहिया जब भी ईट जूना से रगड़ी जाएगी तो आवाज करेगी लेकिन कड़ाहिया की आवाज मुझे परशान करती रही और कड़ाहिया आवाज करता रहा समय बदला तारीख बदली और हम स्वतंत्रता की चोला ओढ़ कर रहने लगे पर कड़ाहिया कीआवाज में कोई फर्क नहीं आया क्योकि देश की ९० प्रतिशत आबादी अभी भी कड़ाहिया को ईट और जून से साफ़ कर रही है और कड़ाहिया का भी रंग लोगो के घर घर में उस पर ध्यान दिए जाने के कारण थोडा साफ़ होता जा रहा है लेकिन एक दिन मैंने इस देश की परम्परा में कड़ाहिया से ही पूछ डाला कि क्यों इतना आवाज आ रही है तुम्हरे अंदर से !!!!!!!!!!!!कड़ाहिया ने कहा इस देश का दर्शन ही ऐसा है यहाँ सजीव निर्जीव और कण कण में भगवान है तो सिर्फ उन्ही को मौका कैसे मिल सकता है जो अपने को मानव समझते है मुझे भी अभिव्यक्ति की आजादी है मैं रोज आवाज करने के लिए स्वतंत्र हूँ भले ही तुमको अच्छी लगे या ना लगे !!!!!!!!!!! मैंने कहा हा इस देश में अभिव्यक्ति की आजादी है पर तुम शायद अभिव्यक्ति की बात करने से पहले उस भारतीय की कहानी भूल गए जिसका नाम शिशुपाल था
उसने भी अभिवयक्ति कीआजादी को गलत तरीके से समझा और उसको अभिव्यक्ति कीआजादी मिली भी पर जब वो अभिव्यक्ति को निरंकुशता की तरफ ले गया तो उसको अपनी गर्दन को कुर्बान करना ही पड़ा इस लिए इस देश में अभिव्यक्ति कीआजादी का मतलब हमेशा से रहा है |कड़ाहिया की हसी से मैं हिला गया कड़ाहिया ने कहा मुझे अभिव्यक्ति का मतलब न समझाओ मैं तभी तो इतनी आवाज करके भी अपने हिसाब से जीने में मस्त हूँ तुम लोगो का काम मेरे बिना नहीं चल सकता क्योकि तुम सबको मेरे अंदर का स्वाद लग चूका है और वैसे भी तुमको अपने अंदर इतनी कमजोरी महसूस करते हो कि अपने अंदर लोहा पैदा करने के लिए मेरा सहारा लिए घूमते हो | मैंने कहा तुम जिस लोहे के दम इतना बददिमाग हो वैसा ही अभिव्यक्ति कीस्वतंत्रता का बुखार २१ बार क्षत्रियों का नाश करने वाले परशुराम को भी चढ़ा था और इसी लिए वो राम को भी सब धन एक पसेरी में गिन बैठे पर जब राम ने अपने नाम का उल्टा मतलब समझाया तो परशुराम को भी अभिव्यक्ति आजदी से ज्यादा राम कीशरण समझ में आई |कड़ाहिया जी आप ज्यादा अभिव्यक्ति कीआजादी का मतलब इस देश में ना लगाओ |कड़ाहिया फिर जोर से अपनी हसी का कोहराम मचा कर मुझे बताया कि ये क्या क्या शिशुपाल राम परशुराम का रजी गान गा रहे हो मैंने जिस समय में अपना जीवन जिया है वो राम क्रिशन का नहीं है वो है संविधान का जिसने मुझे अनुच्छेद १९ में खूब छौकने  बघारने का मौका दिया है और मैं तो हर घर में हूँ इस देश के मुझे खत्म करने कीसोचना भी नहीं पूरा देश मेरे साथ खड़ा हो जायेगा क्योकि मैं उनका स्वाद हूँ और मेरे बिना उनके जीवन का स्वाद ही नहीं पूरा होगा और अगर मेरी जून ईट वाली आवाज को कोई भीक्षति पहुचाई तो और मुझे देश द्रोही कहा तो फंसी तो नहीं लगा पाओगे क्योकि अनुच्छेद ७२ में क्षम दिया जायेगा आखिर मुझे गरम करके ही तो देश का स्वाद बनेगा देख नहीं रहे कैसे कितने लोगो जीभ लपलपा रहे है मानो  कितने दिनों से भूखे हो और उनको कड़ाहिया काफी दिनों के बाद छौकने के लिए मिली हो इस लिए मुझे अभिवयक्ति का मतलब ना समझाओ | और रही बात शिशुपाल की तो ९९ गली उसने दी थी ना तो मैं भी कंस और उसके समर्थो के साथ राम कृष्ण को ९९ गली दूंगा अब उतने स्वाद से किसी का पेट भर गया या उसकी ( पार्टी ) इज्जत बच गयी तो मैं क्या करूँ मैं तो पैदा ही हूँ आवाज करने के लिए आग पर चढ़ने के लिए लोगो के स्वाद को बढ़ाने के लिए अब इसमें मुझ कड़ाहिया का क्या दोष मैं तो आपके हाथ में पकड़ कर ही आग पर स्वाद पैदा करके ईट जूना के साथ मिल कर आवाज पैदा पाती हूँ |मेरी हैसियत क्या है ये मेरी अभिव्यक्ति से नहीं समझ पते मेरी आवाज का कोई भी शब्द आज तक किसी अर्थ में रहा मुझे तो सिर्फ जूना के साथ शोर करना है और आर इस शोर को भी आप नहीं करने देना चाहते तो फिर अभिव्यक्ति बची कहा !!!!!!!!!!!!!!!! कड़ाहिया सही ही तो है आखिर इस देश में अभिव्यक्ति से अभी के व्यक्ति के पास है ही क्या सिर्फ शोर और उस शोर से अपने हाथ सकते कुछ लोग ………कड़ाहिया की बात आर ध्यान मत दीजिये वो तो खुद मजबूर है लगो के हाथो से उठने गिरने चढ़ने और रगड़े जाने के लिए तो फिर ऐसे कड़ाहिया कीअभिव्यक्ति क्या और उसके निर्जीवता को देख कर खुद सोच ले ऐसे में आज का व्यक्ति क्या ????? कड़ाहिया की अभिव्यक्ति कहेंगे या इसे आज का व्यक्ति कहेंगे !!!!!!!!!!!!!!!! डॉ आलोक चान्टिया, अखिल भारतीय अधिकार संगठन

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