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१८ साल का जहर

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१८ साल की उम्र का जहर !!!!!!
तू सोलह बरस की मैं १८ बरस का .मिल ना जाये नैना ……एक दो बरस जरा दूर रहना ……कुछ हो गया तो फिर ना कहना ..इस पुराने गाने में आइये कुछ दर्शन ढूंढते है | एक बात साफ़ है कि कानून क्या कहता है इसका इस गाने से कोई लेना देना नहीं पर लड़की का १६ साल और लड़के का १८ साल उसे बहुत परेशान कर रहा है और कुछ भी होने का डर है और ये डर होना स्वाभाविक भी है क्योकि देश के नियम अनुच्छेद कानून सभी ने १८ साल की उम्र को महत्वपूर्ण जो बना दिया है | आप १८ साल के हुए नहीं कि आप किसी व्यक्ति को साधारण से असाधारण बना कर उसे संसद या विधान सभा में बैठा सकते है | यहाँ एक प्रश्न महत्त्व पूर्ण है कि क्या १८ साल पर जो वोट आप देते है वो बिना सोचे समझे देते है या फिर आप जानते है कि कौन सी पार्टी आपकी सोच और दर्शन से मिलती है अगर आप अपनी सोच के अनुरूप कोई पार्टी चुनते है तो स्वाभाविक है कि चाहे सदस्यता लेकर या उन्मुक्त रूप से आप उसी पार्टी की विचारधारा के अंग हो जयते है और फिर चाहे वो पार्टी सत्ता में रहे या न रहे आप उसी पार्टी की विचारधारा का समर्थन करते है | ये समर्थन नौकरी करने वालो के लिए गुप्त रूप से कार्य करता है पर यवाओ के लिए भविष्य के नेता बनने के लिए उत्प्रेरक का कार्य करता है | ऐसे में ये सोचना कि १८ साल पर मिले संवैधानिक अधिकार का प्रयोग इस देश का युवा तभी करेगा जब देश में कुकुरमुत्त्ते की तरह चुनाव हगा तो गलत होगा क्योकि मनुष्य ना तो मेढक है और ना ही बर्फीला भालू या लोमड़ी जो कुछ समय के लिए सुसुप्त अवस्था में चला जाता है | मानव एक एक प्राणी है जिसने सिर्फ जीने की कला ही नहीं सीखी बल्कि उसको अगली पीढ़ी को भी स्थानांतरित किया है और राजनीति इससे अछूती नहीं है नेता भी चाहते है कि उनकी विचारधारा आगे भी फलती फूलती रहे और इसके लिए युवाओ की मंडी सिर्फ शैक्षिक संस्थाओ में ही मिल सकती है और फिर १८ साल पर देश का राजनैतिक भविष्य तये करने वाले युवा से ये उम्मीद भी नहीं की जा सकती कि वह शैक्षिक संस्थानों में उदासीन बन कर रहेगा जबकि आज का दौर सोशलमेडिअ का है ऐसे में १८ साल की ऊर्जा से लबरेज एक युवा अपने अंदर की क्षमता और राजनैतिक परीक्षा का सबसे बढ़िया मौका यही पाता है कि वो किसी भी मुद्दे पर बोले , अनशन करें | दिल्ली के रिक्शे वाले को भी चोट लग जाये तो सरे चैनल ऐसा दिखाते है मानो पहली बार कोई रिक्शा वाला चोट खाया हो और ऐसे में जब देश में सबसे गरीब शैक्षिक संस्थान ( बुरा ना मानियेगा शायद इसी लिए सबसे ज्यादा आर्थिक सहायता जे एन यू जैसी संस्था को मिलता है ) में कोई बात उठती है तो उसको सारे देश के सामने परोसा जाता है क्योकि इससे देश के अन्य शैक्षिक संस्थानों को उकसाने और उनके अंदर सामूहिक मन के सिद्धांत को पैदा करने का सबसे आसान तरीका सामने आ जाता है ( सामूहिक मन में अगर एक ने कहा मारो तो बिना तथ्य को जाने सभी कहने लगते है मारो मारो भले की मामला कुछ न हो ) | १८ साल में ये भी आसान होता है कि हर राजनैतिक पार्टी सिर्फ शब्दों में दोष का निबंध लिख कर अपनी रोटी सेकने लगते है | अगर ये अफवाह फैलाई जा सकती है कि जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी का दंगा प्रायोजित था और उसमे अखिल भारतीय  विद्यार्थी का परिषद हाथ है तो ये क्यों नहीं माना जा सकता कि कुछ किराये के लोगो को दूसरी पार्टी ने इस लिए ये सब करवाया कि वर्तमान सत्तासीन पार्टी बदनाम की जा सके | जिस पार्टी की सरकार है और जिसे अभी बजट प्रस्तुत करना है | जिसे अभी कई राज्यों में चुनाव लड़ना है वो पार्टी क्यों पाने पैर पर कुल्हाड़ी मारेगी ?? बल्कि साहित्य पुरुस्कार लौटने वाले प्रयोित कार्यक्रम की तरह ये भी प्रायोजित है | यदि युवा का उल्टा लिख दिया जाये तो वायु होता है और देश के नेता ये समझ चुके है कि बस वायु की गति तेज कर दो हीर तो आग लगने से कौन रोक पायेगा और खाक हो रहे देश के लिए सत्ताधारी पार्टी को दोष देकर अगली सरकार के रूप में अपने को सत्ता पाने के लिए प्रस्तुत कर दो | कौन मरेगा युवा ही तो कोई नेता तो नहीं तो मरे कौन किसी नेता के घर का कोई मर रहा है और देश के युवा इस ही नेता गिरी समझ कर देश के विकास को मिटटी में मिला रहा है | अगर संविधान के विपरीत ये नारा ……..अफजल हम है शर्मिंदा …..तेरे कातिल है जिन्दा ..या आजादी लेकर रहेंगे आजादी ……या कश्मीर की आजादी ………..पाक जिंदाबाद के नारे लगाये जा रहे है तो किसी भी तरह ये राष्ट्र प्रेम को नहीं दर्शाती है | शिक्षा के लोग जानते है कि सिर्फ एक या दो लोगो के कुछ होने से ना तो कोई धर्म या जाती संकट में आती है हां यदि देश में कुल जाती या धर्म विशेष की जनसँख्या का १० से २० प्रतिशत अपने जीवन को बाधित पाये तो तो शोध निष्कर्ष के अनुसार चिंता का विषय है और ये माना  जाना चाहिए कि देश में असहिष्णुता बढ़ी है या देश में लोगो का जीवन संकट में है | शिक्षा के लोग शोध के मूल नियम जानने के बाद भी बे सर पैर की बात करके देश को कमजोर करेंगे तो निश्चित ही वो गलत है और संविधान के अनुसार देश द्रोह है जिस संविधान की दुहाई देकर वो आनप सनाप बात अभिव्यक्ति की आजादी से जोड़ते है तो देश द्रोह की बात को भी उनको याद रखना चाहिए | अपनी बात मैं इस लिए कह रहा हूँ क्योकि मैं पार्टी धर्म से ज्यादा उस देश के लिए सोचता हूँ जो मुझे रोटी , रहने की जगह और सुरक्षा दे रहा है और आपसे भी निवेदन है कि……बोली एक अमोल है जो कोई बोले जनि ………हिये तराजू तौल के तब मुख बाहर आणि ….सोचिये कि आप शैक्षिक संस्थानों में क्या नारे लगा रहे है ????? क्या आप अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए कभी सोचते है !!!!!!!!!! सोचिये और देश को मजबूत कीजिये ..जय भारत , डॉ आलोक चान्टिया , अखिल भारतीय अधिकार संगठन

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