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आत्महत्या और राजनीती

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आत्महत्या ………….
रोहित वेनुयला बनाम विवेक शुक्ल
भारत में रहने वाला एक भारतीय पहले दलित है और वो इस देश में शोषण से क्षुब्ध होकर आत्महत्या कर लेता है | पूरा देश जब तक रोहित परेशान रहा ,सोता रहा भला रोटी के आगे किसी के दर्द को कोई क्यों सुने और अरब जनसँख्या वाले देश में अपने को अकेले पाकर वो इस दुनिया से चला जाता है | चारों तरफ हल्ला होता है | ना जाने कितनो ने अपनी रोटी सेंक ली ऐसा लगा जैसे पूरा भारत किसी भी भारतीय के लिए संवेदन शील है और सारा देश देश की जवाबदेही चाहता है एक युवा भारतीय के आत्महत्या पर !!!!!!!!!!
कुछ दिन बीतते है और उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में एक युवा शिक्षक डॉ विवेक शुक्ल देश की राजनीती , बेरोजगारी और नीतियों से क्षुब्ध होकर आत्महत्या कर लेता है …………….. पर ये क्या सिर्फ कुछ समाचार पत्र में एक छोटी खबर छप जाती है कही कोई संवेदन शीलता नहीं दिखाई देती | कोई भारत का लाल नहीं उसको कहता | कोई राजनितिक पार्टी उसके घर कदौरा नहीं करती !!!!!!!!!!!! कोई शासन प्रशासन किसी भी तरह के अनुदान की घोषणा नहीं करता | एक युवा विवेक देश की अरब जनसँख्या के ब्लैक होल की तरह खो जाता है | कोई आंदोलन नहीं कोई मार्च नहीं कोई विरोध नहीं !!!!!!!!!!!
क्या रोहित के मौत पर पुरे देश का बोलना सिर्फ दिखावा है !!!!!!!!!!!! क्या रोहित से राजनीती चमक सकती है ???????? क्या रोहित के दलित होने का पत्त्ता   भुनाया जा रहा है !!!!!!!!! क्या रोहित भारतीय से ज्यादा इस देश में दलित बना कर देखा जा रहा है ??????
शायद विवेक शुक्ल इसी लिए देश में अंधकार में खो गया क्योकि वो दलित नहीं है और उससे किसी को राजनैतिक फायदा नहीं मिल सकता | और सवर्ण तो वोट राजनीती में साथ है ही उनसे उतना खतरा नहीं पर अगर दलित को सही तरीके नहीं लिया गया तो कई पार्टी की चूले हिल सकती है |
क्या आप में से कोई गंभीरता पूर्वक ये बता सकता है कि विवेक शुक्ल के आत्महत्या पर क्यों नहीं कोई शोर सुनाई दिया ??????? क्या वो भरित्ये है इस लिए या फिर वो दलित नहीं है इस लिए !!!!!!!!!!!!!!!!! डॉ आलोक चान्टिया , अखिल भारतीय अधिकार संगठन

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