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हम सब एक है ………व्यंग्य
अब जब एक आतंकवादी समूह ने ये स्वीकार कर लिया है कि पठान कोट में आतंकी हमला उसने करवाया है तो क्या बचा है करने के लिए | हमारे देश में गलती मान लेने वाले को माफ़ करने का रिवाज़ है तो फिर अब हाय तौबा करने का क्या फायदा ??? क्या अच्छा लगेगा कि हम सब लोग अपनी संस्कृति के खिलाफ काम करें !!!! शायद आप यही कहेंगे बिलकुल नहीं क्योकि एक तो आतंकवादियों ने खुद माना कि देश को अस्थिर करने और मासूम और बेवजह लोगो को मारने में उनका हाथ है तो अब ये जानने का कोई जहँझट नहीं कि कौन लोग थे आतंकवादी थे या नहीं !!अपने देश के थे या बाहर के और अब तो कुछ लोग इस तयारी में लगे होंगे कि उनको निशाने मानवता का अवार्ड दिया जाये और वो तो शेर है जो हमारे ही घर में घुस कर वार कर रहे है और शेर से लड़ने की ताकत का कैप्सूल रामदेव जी ने अभी बनाया नहीं वो तो मैगी में ही फसे है और अगर आतंकवादियों ने हमारे देश के बहदुर सैनिकों को कायरता से मार दिया तो भी क्या व्यक्ति बड़ा नहीं होता देश बड़ा होता है और हमारी धरोहर हमारी संस्कृति है | इसी लिए तो कहा गया है क्षमा बड़न को चाहिए ..छोटन को उत्पात ( आखिर ये भी तो सभी करना है कि हम हर मामले में पाक से आगे है और वो हमसे बहुत छोटा है तो कुछ लोगो को ऐसे मरने दीजिये ) और जहर जहर को मारता है पर हम तो जहर दुनिया में फैलने से पहले ही शिव को पिला कर नीलकंठ बनाने में विश्वास रखते है | लेकिन आप कह सकते है कि लोहे से लोहे को काटा जाता है पर आप के पास तो जो लोहा है उसमे मोर्चा लग चुका है और चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य मर चुके है ( उनके द्वारा बनवाया गया लौह स्तम्भ आज में १६०० साल बात जयों का त्यों खड़ा है कुतुबमीनार के बगल दिल्ली में जिस पर आज तक मोर्चा नहीं लगा ) वैसे कहते है कि दूध का जला छाछ भी फूंक फूंक कर पीता है लेकिन आपको जब अपने जवानो को खोने का कोई दर्द होगा तब तो छाछ को फूंकेंगे | क्या आपको अपने देश के जवान कभी अपने घर के सदस्य जैसे लगे (अब आज तो झूठ बोल दीजियेगा ) डॉ आलोक चान्टिया , अखिल भारतीय अधिकार संगठन
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