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देश में किशोर न्याय अधिनियम का तमाशा

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बलात्कार करने वाले की उम्र !!!!!!!!
दानव की कोई उम्र होती है !! राक्षस की कोई उम्र होती है !!! पर आज भारत जैसे देश में एक बलात्कारी सिर्फ इस लिए छूट गया क्योकि देश किसी के साथ अन्याय नहीं कर सकता भले ही हो बलात्कारी क्यों ना हो ये शायद हमारे देश का ही साक्ष्य अधनियम ही तो है जो सात साल के बच्चे की गवाही को भी मानयता देता है | शायद उसके पीछे यही मान्यता होगी कि सात साल का बच्चा सब समझता है पर यही दिशा क्योकि नहीं बलतकार में अपनायी गयी !!! मैं मानवशास्त्र से सम्बंधित है और शारीरिक मानव शास्त्र मेरा क्षेत्र है | उसके अंतर्गत मैं ये कहना चाहता हूँ कि जब प्राकृतिक व्यवस्था १० साल के बच्चे के शरीर में उन द्रव्यों का निर्माण कर देती है जिनसे एक लड़का पिता और एक लड़की माँ बन सकती है तो प्राकृतिक व्यवस्था को क्यों नही संज्ञान में लिया जा रहा है | देश में १८ साल से नीचे की उम्र वाले को बच्चे मानने के सन्दर्भ  यह नहीं भूलना चाहिए कि ये बात उस स्थिति के लिए सत्य है जब बच्चे की शादी की जा रही जो उनको माँ और पिता काम उम्र में बनाया जा रहा हो | जब उनको पढ़ने नही दिया जा रहा हो और उनसे ऐसे कार्य करवाये जा रहे हो जो उनके स्वास्थ्य में विपरीत असर डालते हो पर इसका लाभ बलत्कारी को नहीं मिलना चाहिए | यदि कानून में नैसर्गिक न्याय का सबसे ज्यादा महत्व है और प्राकृतिक नियम ये सिद्ध करते है कि एक बच्चा माता पिता १० की उम्र में बन सकता है तो कम से कम यौनिक क्रियाओ के लिए बच्चे को एक परिपक्व
व्यक्ति की ही तरह ही समझा जाना चाहिए | प्राकृतिक स्तर पर जो बच्चे पैदा करने  में सक्षम  है वहाँ पर बच्चे को परिभाषित करने वाले राज्य के विधि से इतर करके देखा जाना चाहिए | क्या विधि में कोई ऐसी व्यवस्था है जो बच्चो के शरीर में बनने वाले जनन द्रव्यों की उम्र को बढ़ा सके और अगर ऐसा नहीं है तो राज्य को प्राकृतिक व्यवस्था में कृत्रिम विधि को लेकर एक बलात्कारी को नहीं बचाना चाहिए | नैसर्गिक न्याय के प्रकाश जो भीकानून किशोरों के लिए बनाया जाये उसके शरीर में बनने वाले हार्मोन , जनन द्रव्यों के स्वाभाविक निर्माण और उसके कारण शरीर में आने वाले परिवर्तन को ध्यान में रख कर बनाया जाये | और ऐसे कानून में सेक्स और यौनिक क्रियाओ को पूरी तरह से अलग करके और उसको अपवाद मानते हुए किशोरों के लिए उम्र १० साल या उससे ऊपर के बच्चो द्वारा की गयी किसी भी यौनिक छेड़ छाड़ या अपराध को एक वयस्क के द्वारा किये गए अपराध के समतुल्य माना जाये और उसी के अनुरूप सजा का प्राविधान हो | यदि ऐसे परिवर्तन नहीं किये गए तो आने वाले समय में बच्चे १० साल की उम्र से ही इस तरह के अपराधो की और उन्मुख हो जायेंगे क्योकि सजा तो एक औपचारिकता जैसी होगी | यही नहीं लड़कियों के अपहरण करने वाले समूह लड़कियों के लिए ऐसे जरूरत मंद गरीब बच्चो का इस्तेमाल करेंगे जो पैसे के लिए ऐसे अपराध करेंगे क्योकि उनको सजा कम होगी | इन सभी सम्भावनाओ को देखते हुए ही अखिल भरित्ये अधिकार संगठन भारत सरकार से इस बात की अपील करता है कि ऐसे बच्चे जिन्होंने बलात्कार या कोई भी यौनिक अपराध किया है उनके लिए उम्र की सीमा १० वर्ष रखी जाये क्योकि प्राकृतिक आधार पर इस तरह की क्रिया के लिए वो परिपक्व है तो उनको सजा भी परिपक्वता वालो की तरह ही मिलनी चाहिए  ताकि बच्चो का अपराध में प्रयोग रुक सके | क्या आप अब और किसी भी निर्भया की जान बचाने में संगठन के साथ है | डॉ आलोक चान्टिया , अखिल भारतीय  अधिकार संगठन

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