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कम पढ़े लिखे नेता …संविधान की जीत

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ऐसे करते है हम संविधान की रक्षा …….
भारत में स्वतंत्रता के बाद सब कुछ तो संविधान की तरह ह चल रहा है | अब आप ही बताइये कि क्या किसी अनुच्छेद में लिखा है कि शिक्षा के आधार पर भेद किया जायेगा तो फिर आप देश में कैसे इसे असंवैधानिक कह सकते है जब कोई कम पढ़ा लिखा देश के शिक्षा विभाग का मंत्री बन जाता है या फिर बिहार में कोई चपरासी और क्लर्क बनने की योग्यता पर उपमुख्य मंत्री या स्वास्थ्य मंत्री बन जाता है | अब इस से ज्यादा समानता और आप क्या चाहते है कि इस देश में शिक्षा के आधार पर कोई भी भेद सरकार नहीं रखना नहीं चाहती | कोई भी बिना पढ़ा लिखा व्यक्ति भी पढ़े लिखे लोगो का नेता बन सकता है | अब इससे आदर्श व्य्वश्था और या हो सकती अनुच्छेद १४ की आखिर यही तो समानता है इस देश में | और जाति, लिंग , प्रजाति , रंग के आधार पर तो रोज हत्या , शोषण अत्याचार तो हो सकता है पर क्या मजाल जो शिक्षा में कमी होने पर भी कोई देश का मंत्री न बन सके | कोई जरुरी तो नहीं सारी बात संविधान में लिखी हो कुछ बाते मतलब निकाल कर समझी जा सकती है | अब अपधे लिखे लोग टीचर , प्रशासनिक अधिकारी बनना चाहते है तो भला सरकार क्या करें उसने तो रोक नहीं पढ़े लिखे लोगो को नेता बनने से और जन वो अपनी इच्छा से नेता से ज्यादा नौकरी करना चाहते है तो सरकार भला कैसे अनुच्छेद १९ का उल्लंघन होने दे जो भारतीयों को कोई भी व्यवसाय अपनाने का अधिकार देती है | अब भूल से भी ना कहियेगा कि अनुच्छेद २१ में गरिमा पूर्ण जीवन नहीं मिल रहा है क्योकि आपने ही गरिमा तो उनको दी है जो पढ़े लिखे नहीं है और देश में उपमुख्यमंत्री बन रहे है जब आपने असमानता को समानता लाने के लिए बलि चढ़ा दिया है तो फिर तन क्यों दे रहे है कि देश में नेता पढ़े लिखे नहीं है | आप धयान से देखिये ये एक मात्र देश ऐसा है जहा पर पुरे विश्व में शिक्षा के आधार पर कोई भेद भाव नहीं है | अनपढ़ नेता बन सकता है आखिर आप को डार्विन के सिद्धांत को सही जो करना है कि ” योग्यतम की उत्तरजीविता ” और आप अपने को खुद योग्य पाते नहीं आपतो बेरोजगार है जो संघर्ष के लिए पैदा हुआ है जो योग्य है वो देश और राज्य की सरकार में है | क्या अब भी आपको लगता है किबिहार में कम पढ़े लिखे नेता का होना गलत है ?? पहली बात तो आप ने संविधान को स्थापित किया है | समानता के लिए प्रयास किया है आखिर शिक्षित होकर नेता होने से क्या लेना देना | अगर हिंदी अंग्रेजी पढ़ना नहीं आता तो क्या होता ऐसे नेता की सहायता के लिए ही तो आप नौकरी पाने के लिए रात दिन मर रहे है क्योकि सहयोग करना , दूस्र्रों की सहायता  करना तो आपकी संस्कृति है फिर समस्या कुछ है ही नहीं जिओ और जीने दो | खुद नौकरी  के लिए पिसो और अनपढ़ को राजा बना कर सारे सुख दो क्योकि दूसरों के लिए जीने का जो मजा है और कहा ? और हार में ही तो जीत है | आप पढ़ लिख करके नौकरी के लिए तरसो , आत्महत्या कर लो और वो आपके वोट से नेता बन कर पूरे जीवन पेंशन पाये ऐसे नर की सेवा से ही तो नारायण मिलते है आखिर जब आप तिल तिल करके मरेंगे तो यही लोग तो आपको मुआवजा देकर बताएँगे कि ये अपने राज्य के लोगो की कितनी चिंता करते है पर आपको मर कर भी ख़ुशी मिलेगी कि आप भूखे नंगे गुमनाम मर गए पर कम से कम एक बिना पढ़ा लिखा इस देश में नेता तो बन गया जो वो कभी पा ही नहीं सकता था अगर आपने गलत वोट ना दिया होता अब आपको इतने बड़े त्याग के लिए अपनी बर्बादी करके दूसरे को आबाद करने के लिए भगवन आपको स्वर्ग ही तो देगा | मतलब आपको वह स्वर्ग मिला और यहाँ अनपढो को स्वर्ग मिला पर ये अनपढ़ कहा है ये तो संवैधानिक न्याय है आखिर सबको जीने का समान अधिकार है तो कीजिये ऐसे उपमुख्यमंत्री का स्वागत क्यों आपके प्रयास से इस देश में संविधान के अनुच्छेद को नयी व्याख्या जो हुई है | आप सभी को एक से बढ़ कर एक कम पढ़े लिखे लोगो को मंत्री बनाने के लिए साधुवाद आखिर अपने को बर्बाद करके दूसरे को आबाद करने की मिसाल सिर्फ इसी देश में मिलती है | ( व्यंग्य समझ कर पढ़िए एक सच्चाई ) डॉ आलोक चान्टिया , अखिल भारतीय अधिकार संगठन

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