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हिंदी दिवस और हिंदी का सच

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हिंदी दिवस और हिंदी का सच
हिंदी एक फ़ारसी शब्द है वैसे हिंदी के मर्मज्ञ इस बात को मैंने में कतराते है पर ईरान की भाषा अवेस्ता में स को ह बोला जाता है इस लिए दसवीं शताब्दी के बाद राजस्थान के रस्ते से होकर आक्रमण कारियों के लिए भारत में प्रवेश करना सबसे आसान था एयर इसी लिए उन्होंने यहाँ सिंधु नदी के किनारे बसे जगह  को हिन्द कहा जाने लगा और यहाँ के लोगो को इ प्रत्यय लगाकर हिन्दीक या हिंदी कहा जाये लगा जिसका मतलब है हिन्द के लोग | शायद इसी लिए इकबाल ने लिखा कि हिंदी है हम ……और १९६२ की लड़ाई में चीनियों ने भी नारा लगाया हिंदी चीनी भाई भाई | इन्ही हिंदी लोगो की भाषा को भी हिंदी कहा गया | चुकी ज्यादातर आक्रमण उत्तर पश्चिम दिशा से हुए और ये क्षेत्र हिंदी भाषा बोलने वालो का ज्यादा था इसी लिए हिंदी को अन्य भाषाओँ से ज्यादा प्राथमिकता मिली | हिंदी इंडो आर्यन और इंडो ईरानी शाखा से उत्पन्न है | आपको ज्ञात हो कि इस देश में हिंदी के अलावा भी २२ भाषाए है और सभी इंडो ईरानी की उपशाखा है इस लिए हिंदी को ज्यादा प्राथिमिकता अन्य राज्यों को स्वीकार नहीं है | असामी  , गुजराती , आदि भी हिंदी के समकक्ष भाषा है | यहाँ ये भी जानना जरुरी है कि जिनकी लिपि होती है वही भाषा कहलाती है पर अवधि , भोजपुरी , बृजभाषा, छतीशगढ़ी , गढ़वाली , हरियाणवी , कुमाउनी , मगधी आदि हिंदी की बोली है | हिंदी का वर्चस्व एक तो संविधान के कारण बढ़ा दूसरे इसको आगे ले जाने में हिंदी सिनमा का भी योगदान रहा है | वैसे इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि भारतीय रेलवे के कारण भी हिंदी पुरे देश में फैली क्योकि हर स्टेशन पर हिंदी जरूर लिखी मिलती है | भारत में हिंदी दिवस हिंदी से ज्यादा खुद को गौरवन्वित कराने का कार्यक्रम ज्यादा हो गया है | भारत में आज विद्यार्थी को ये पता है कि अंग्रेजी के बिना नौकरी नहीं मिलेगी | हिंदी में किताब लिखने वालो को दोयम दर्जे का माना जाता है | इस लिए भले ही काट छाँट करके ही विषय की किताब लिखी जाये | लोग उसी का प्रयास करते है | हिंदी की गिनती तो लोग ऐसे सुनते है मानो वो भारत में पढ़े ही ना हो | ये सोच कर हम सब का सीना फूल जाता है कि ऑक्सफ़ोर्ड डिक्शनरी में २०००० शब्द हिंदी के शामिल किये गए है | वौइस् ऑफ़ अमेरिका , वौइस् ऑफ़ रुस्सिया और बी बी सी जैसे कार्यक्रमों का उदहारण देकर हिंदी को स्थापित करने का प्रयास किया जाता है | आज के दौर में हिंदी के सीरियल १०० से ज्यादा देशो में देखे जाते है पर इन सबके बीच हिंदी में एक आम भारतीय का क्या भविष्य है ? इस पार हर तरफ मौन है | सरकार की बीमा पालिसी ओ या कोई भी अन्य योजना, सभी में अंत में लिखा रहता है कि विवाद की स्थति में अंग्रेजी में लिखी बात को ही माना जायेगा | मैं उत्तर प्रदेश का रहने वाला हूँ और मानव शास्त्र के सम्बंधित हूँ | पूरे उत्तर प्रदेश में ये विषय सिर्फ लखनऊ के डिग्री क्लाेज् में पढ़ाया जाता है | पर आज तक इसके प्रयोगात्मक परीक्षा के पेपर हिंदी में नही बने | जबकि पढ़ने वाले गावों  के ज्यादा होते है | क्या आप मान सकते है कि इस विषय के शिक्षको को हिंदी नहीं आती या फिर ये खुद ये चाहते है कि हिंदी के विद्यार्थी आगे ना बढ़ पाये | आज यथार्थ पर आकर सोचना होगा कि हिंदी जनमानस में विस्तार क्यों नही ले पा रही है | क्या इसका एक कारण ये नहीं कि जो जिम्मेदार लोग है वो खुद को हिंदी से संबध रख कर अपने को हीं नहीं देखना चाहते | हर विषय को हिंदी में पद्य जाये और उसके लिए हिंदी की पुस्तक लिखी जाये | आज कल फैशन चला है कि एक घटिया सी किताब लिखिए फिर उसे किसी पुस्तकालय से सिफारिश करवा करके १००-२०० कॉपी बिकवा लीजिये | अपनी किताब का दाम निकल आया और जिस पुस्तकालय में ऐसी किताब रखी धूल खा रही है वह का मुखिया फर्जी बयां देता मिल जायेगा कि पुस्तकालय में भरपूर किताबे जब वो एक कूड़े ज्यादा कुछ नहीं | अगर हिंदी को समझना है तो उसको राष्ट्र और कर्तव्य से जोड़ कर देखना होगा तभी हिंदी को वो स्थान मिलेगा जिस भावना संविधान के ३४३-३५१ अनुच्छेद में हमारे देश के कर्णधारों ने उकेरा था | आप सभी को हिंदी बनने की शुभकामना ……आलोक चान्टिया , अखिल भारतीय अधिकार संगठन

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