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सुबह से ऊब कर सूरज छिप गया ……………चाँद भी आकर अँधेरे से लिपट गया ……………..मैं क्या करू अब जाग कर आलोक ……………….नींद की आगोश में झट सिमट गया ……………..कल तक लगा सब जीते ही नही अब …………………..टिमटिमाते तारे से कोई दीपक निपट गया ………….कुछ देर दुनिया से दूर आओ चले हम …………………….. जिन्दगी का दौर फिर मुझे झपट गया ……………………….न जाने क्यों हम यह समझते है की कोई उसके लिए जी रहा है पर ऐसा है नही ……बस आपके रस्ते में कोई आ जाता है और आपको लगता है कि वो आपके साथ साथ है पर दोनों अपना अपना रास्ता जीते है …जैसे अभी रस्ते में रात आ गयी और हम कह उठे …शुभ रात्रि
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