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परायापन

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पराई का जो मतलब मुझे समझ में आता है वो है एक ऐसी इस्थिति में किसी व्यक्ति , वस्तु या स्थान  होना जिस पर आपका अधिकार न हो पर या वास्तव में बेटी पर उसके अपनों का अधिकार नही रह जाता है | मुझे तो आज तक लगता है कि शायद ही किसी के माँ बाप या बाई ने इस लिए दहेज़ कि सती या जलाई गई लड़की के लिए लड़ाई लड़ने से मना कर दिया हो कि लड़की तो अब पराई हो चुकी है !!!!!!!!!! क्या आप को कोई ऐसा समाज पता है झा आज के दौर में लड़की को इस लिए सिर्फ चुलह काक्की में रखा जा रहा हो क्योकि उसको पराया बनना है बल्कि ससुराल में उसको कोई परेशानी न हो इस लिए लड़की को पढ़ाने पर भी धयान बढ़ा है और लोग पराया नही समझ रहे है | मई कम से कम अपने भाई और ३ ऐसे शिक्षको को जनता हूँ जिन्हों ने बेतिओ को जन्म देकर ख़ुशी जताई और लड़का पैदा करने के कोई भी उपाए नही किये यानि उनके नज़र में लड़की की भूमिका लड़के में बदलती जा रही है | लड़की पराया धन जरुर खी जाती है पर पराया धन का मतलब भारतीय संस्कृति और याज्ञवल्क्य स्मृति में लिखा है एक ऐसा धन जिसे धरोहर समझ कर रक्षा की जानी चाहिए  यानि  अपने से ज्यादा सुरखा तो फिर लड़की के अरये होने का मतलब ज्यादा धयान , प्रेम , रखन और उसे इतना देना शिक्षा मूल्य कि जो भी उसे अपनी अमानत समझ कर ले जाये उसे लगे कि वर्षो तक धरोहर के रूप में रखने के बाद उन्हें उनका हिस्सा अपेक्षा कृत ज्यादा ही मिला है और वह उस लडकी से अपने घर कि श्री वृद्धि कर सके और इसी अर्थ में एक लड़की लक्ष्मी का रूप  ले लेती है  पर धीरे धीरे परायापन का अर्थ इतना संकुचित हो गया कि लड़की को पराया कहकर यह प्रचारित किया जाने लगा कि या तो परायी है तो इस पर किसी भी तरह का निवेश क्यों किया जाये उर इस अर्थ में लड़की मूल्य के ज्यादा आर्थिक हो गई जो सिर्फ एक अपसंस्कृति का उदहारण भर है और इसी लिए लड़की के इस बदले अर्थ ने लड़की के जीवन कोपैसे का समानुपाती बना दिया यानि पैसा कम तो लड़की के जीवन के सुख कम औए यही से लड़की की स्थिति दयनीय  हो गई | इस लिए बेटी परायी होती है , का विश्लेषण करते समय सामाजिक मूल्य से आर्थिक मूल्य की तरह होंने वाले परिवर्तन को धयन में रखना होगा | इन सबसे इतर जब  आप इस अर्थ को विज्ञानं या आनुवंशिक अर्थ में देखेंगे तो पाएंगे कि एक्स गुण सूत्र के कारण एक लड़की में ज्यादा क्षमता होती है कि वह दुःख , संघर्ष , विपरीत परिस्थिति को आसानी से सहन कर सके , वह नए स्थन के साथ आसानी से सामंजस्य कर लेट है और यही कारण है कि विवाह में लड़की की विदाई को प्राथमिकता दी गई और यही वैज्ञानिक क्षमता के कारण लड़की के लए यह बाध्यता बन गई की वह पैदा होने के बाद दुसरे के घर जाये और फिर आपसे रक्त संबंधियों के बीच विवाह निषेध ने भी लड़की के लिए घर से बाहर शादी का प्रचलन कायम किया जिसके कारण लड़की के लिए जन्म के बाद से यह सोचा जाने लगा कि उसे एक न एक दिन टी जाना ही है और इसी भावना ने एक अनुवांशिक तथ्य को सांस्कृतिक परम्परा बना डाला जिसके विषम परिणाम अब देखने को मिल रहे है और जिसने लडकी के स्वतंत्र जीवन को प्रभावित भी किया है | पर लड़की को अज्ञानता के कारण परायेपन का दंश झेलना पड़ता है …………अखिल भारतीय अधिकार संगठन , डॉ आलोक चान्टिया

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