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माँ और दिन

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अंगड़ाई  लेकर देखा जब ,
सूरज मेरे पास खड़ा था ,
पलट कर देखा शून्य मिला ,
आकाश अनंत सा पड़ा था ,
तो क्या फिर सुबह हो गई ,
खग  की यात्रा शुरू हो गई
पायल की आवाज़ अभी आई ,
रसोई से एक खुशबू सी आई ,
लोरी सी आवाज़ भी पीछे ,
सुनो जल्दी उठो कब तक ????
भगवन का नाम तो ले लो ,
सोते रहो गे अब कब तक ,
मै दौड़ा बिस्तर से सरपट ,
पर नीरवता रसोई में छाई ,
ओह यह सिर्फ स्वप्न था ,
माँ मुझे ही थी याद आई ….
सुबह सबह आंचल की ममता ,
फिर बिन कहे मैंने  थी पाई………………….आज सो कर उठने का मन नही था पर मुझसे सैकड़ो किलोमीटर दूर माँ को शायद मेरे दर्द का एहसास आज भी हुआ और मै पूरी रात उन्ही के साथ न जाने क्या क्या सोचता रहा .और उसी को मैंने आपके साथ अभी उठने के तुरंत बाद बाटा है …आप सभी को माँ मुबारक

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